Tuesday, May 13, 2008

छोटा पत्रकार बड़ा पत्रकार

समाज के इन दो वर्गों को कवर करते हुए पत्रकार भी दो श्रेणियों में बंटे हुए हैं. एक है छोटा पत्रकार. बेचारा. चेहरे पर दीन-हीन भाव, पिचके गाल और पेट, कभी कुर्ता तो कभी कंधे पर बैग लटकाए. दुम हिलाते आगे-पीछे घूमते हुए.

एक है बड़ा पत्रकार. चेहरे पर कुलीनता. मोटी तनख्वाहों से पेट और गाल फूलते हुए. कभी कुर्ता पहने तो चंपू बोले वाह सर क्या फैशन है. चार पांच चंपू आगे-पीछे घूमते हुए.

ख़बर भी इन दोनों के अंतर को समझती है. इसलिए छोटा पत्रकार ख़बर के पीछे भागता है. ख़बर बड़े पत्रकार के पीछे भागती है.

बड़ा पत्रकार ख़बर बनाता भी है. छोटा पत्रकार बड़े पत्रकार पर ख़बर लिखकर खुद को धन्य महसूस करता है. बड़े पत्रकार का पार्टियों में जाना, मैय्यत में जाना, नए ढंग से बाल कटवाना सब ख़बर है.

बड़ा पत्रकार पैदा होता है. छोटा पत्रकार छोटी जगह से आकर बड़ा बनने की कोशिश करता है.

बड़े पत्रकार के मुंह में चांदी की चम्मच होती है. वो बड़े स्कूलों में पढ़ने जाता है. शुरू से उसकी ज़बान अंग्रेजी बोलती है. हिंदी में वो सिर्फ़ अपनी कामवाली बाइयों और ड्राइवर से ही बात कर पाता है.

छोटा पत्रकार टाटपट्टियों पर बैठकर पढ़ाई करता है. मास्टरजी की बेंत उसके हाथों को लाल करती है. बारहवीं कक्षा तक फ़ादअ को फ़ादर और विंड को वाइंड कहता है. गुड मॉर्निंग कहने में ही उसके चेहरा शर्म से लाल हो जाता है.

नौकरियां छोटे पत्रकार को दुत्कारती हैं. बड़े पत्रकार को बुलाती हैं. नेता भी बड़े पत्रकार को पूछते हैं. छोटे से पूछते हैं तेरी औकात क्या है.

लेकिन छोटा कभी कभी बड़े काम करने की कोशिश भी करता है. कभी-कभी कर भी जाता है. लेकिन जब बड़ी ख़बर लेकर बड़े पत्रकार के पास जाता है तो बड़े पत्रकार को उसके इरादों पर शक होने लगता है.

कही ये अपनी औकात से बाहर तो नहीं निकल रहा. कहीं ये मेरी जगह लेने की कोशिश तो नहीं कर रहा. अबे ओ हरामी छोटे पत्रकार. अपनी औकात में रह. ये ख़बर अख़बार में नहीं जाएगी.

बड़ा पत्रकार कई बार छोटे को ख़बर का मतलब भी समझाने लगता है. देख छोटे. आज कल न ये समाजसेवी ख़बरों का ज़माना नहीं रहा. भ्रष्टाचार का खुलासा करेगा. अरे वो तो हर जगह है. आज के ज़माने में नई तरह की ख़बरें चलती हैं.

देख छोटे. टीवी चैनल्स को देख. वहां क्या नहीं बिक रहा है. खली चल रहा है. राखी सावंत के लटके-झटके चल रहे हैं. तू इन सबके बीच ये ख़बर कहां से ले आया रे.

लेकिन हुजूर हमें तो यही सिखाया गया. अबे चुप ईडियट. क्या पोंगा पंडितों की बात करता है. देख तेरी इच्छा यही है न कि तू भी बड़ा पत्रकार बने. बड़ी गाड़ी में घूमे. मोटी तनख्वाह पाए. इसलिए जो तूझे सिखाया गया उसको भूल जा. अब जैसा मैं करता हूं वैसा कर तो बड़ा पत्रकार बन जाएगा.

अबे तेरी औकात क्या है छोटे. कहता है बीस साल हो गए पत्रकारिता में. क्या मिला. अरे मिलेगा क्या. बाबाजी का घंटा. हमें देख. दस साल में कहां से कहां पहुंच गए.

छोटा और छोटा हो जाता है. लटका चेहरा लटक कर पैर तक पहुंचता है. घर पहुंचता है तो बीवी की मुस्कान उसे चुड़ैल के अट्टहास की तरह लगती है. कल तक जिस बेटे को सिर आँखों पर रखा उसे लात मार कर बोलता है अबे ओ छोटे की औलाद. तू ज़िंदगी भर छोटे की औलाद ही रहेगा.

13 comments:

Anonymous said...

आपने बड़ी चुटीली भाषा में एक संवेदनशील विषय पर कलम चलायी है। कमाल का लिखा है। मज़ा आ गया।

PD said...

छोटे पत्रकार पर एक कविता याद आ रही है.. शायद अनंत कुशवाहा जी कि है..

बिखरे बाल थोबड़ा सूखा..
फटेहाल नौ दिन का भूखा..

Anonymous said...

एक सच्चाई को दिखाती पोस्ट। आपने चोट करती बाते लिखी है। और चोट होनी भी चाहिए। बस सच्चाई निकलनी चाहिए।

Rajesh Roshan said...

आपकी बात सच भी है और नही भी. कभी कभी बड़े पत्रकार बड़े सज्जन होते हैं और छोटे पत्रकार उतने ही दम्भी. इनकी चले तो बडो की बखिया उधेड़ दे. और उन बडो की इच्छा होती है की यह भी कुछ सिख जाए. ऐसे लोग हैं. इसलिए लिखा की सही भी और नही भी
राजेश रोशन

Batangad said...

अखिलेशजी
आप छोटे पत्रकार तो हैं नहीं

उमाशंकर सिंह said...

छोटे और बड़े पत्रकार के बीच के इस विभेद को सतही नहीं बल्कि गहराई में जाकर देखने की ज़रुरत होती है। अगर ऐसा कर पाएं तो कई 'बड़े' पत्रकारों का छुटपन और कई 'छोटे' का बड़प्पन साफ़ नज़र आ जाता है।
बहरहाल, तमाम छोटे पत्रकारों की दुखती रग पर हाथ रखने के लिए अखिलेश को 'छोटे पत्रकार एसोसिएशन' की तरफ से बधाई ज़रुर मिलनी चाहिए!

Anonymous said...
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akhilesh sharma said...
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कुमार आलोक said...

chirkuton kee kamee nahee hai dost. apanaa kaam kijiye blog ki dunia main bhee ab log bodhik vomating karne ke baad gali galuaz par utar aye hai sharm aanee chahiye. waise bahut sundar article hai aapakaa.

सुशील राघव said...

अखिलेश जी
लेकिन जो छोटे कर जाते हैं उस कम को बड़े नहीं कर सकते। अब ये बता दो आख़िर बड़ा पत्रकार कैसे बना जाता है?

Unknown said...

Akhileshji,

bahut saral shabdon me sachhai bayan ki hai aapne is lekh ke zariye.

Patrakarita ki duniya ke bare me koi vishesh jaankari to mujhe nahi hai,ek baat poochna chahti hoon,ki bada patrakar kya sirf wahi hota hai jo fluent English bolta ho?
hindi news channels me moti rakam pane wale patrakar kya bade patrakar ki shreni me nahi aate?

Pawan Nara said...

khub kaha, lakin janab patarkar to humasha hi chota hota hai, aur jis badae patarkar ki baat aap kar arhae hai wo darashal eak marketing agent hai, khabaro ka marketing agent, wo MBA kar kae patarkar banta hai, khabro kae business ko manage karta hai.khabar aaj vichar nahi vaipar hai "manage " to karna hi dharam lagata hai.

umashankar said...

madarchod ...gand chaapte ho bhonsadchod ...ma chod dene chahiye tumhaareeeee