ये मेरे शब्दकोश में जुड़े ताज़ा शब्द हैं. इनका मतलब सीधा-सीधा समझाना मुश्किल है. लेकिन मुझे ये शब्द बताने वाले बिहार से केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह कुछ-कुछ समझा पाते हैं.
उनका कहना है कि खड़ी हिंदी में इनका कोई पर्यायवाची नहीं है. ये एक तरह से चुटकी लेने का ढंग है. मिसाल के तौर पर श्रीमान क लटपटिया हैं. इसका मतलब ये है कि क पर विश्वास नहीं किया जा सकता. वो कभी कुछ कहते हैं तो कभी कुछ और.
बकलौल का अर्थ मैं नहीं समझ पाया. अगर आपमें से कोई जानता हो तो बता दे.
मैं जहां से आता हूं. मध्य प्रदेश के मालवा से वहां हमारे स्थानीय स्लैंग होते रहे हैं. ज़्यादा तो अब याद नहीं. लेकिन उन्हें सुनने में बेहद रस आता रहा.
इंदौर में मुंबई का बेहद प्रभाव है. ये वहां की भाषा में भी दिखाई देता है. जैसे कल्टी होना. यानी के पी के. खाओ पिओ और खिसको.
चिरकुट शब्द की उत्पत्ति पर शोध किया जा सकता है. इसका इस्तेमाल हम कॉलेज में बढ़ते वक्त भी करते रहे. दिल्ली आकर भी ये उपाधि प्रचलन में देखी. एक बार समाजवादी पार्टी के महासचिव अमर सिंह के मुंह से सुना तो अच्छा लगा. वो इस उपाधि से किसी को महिमामंडित कर रहे थे.
जुगाड़ तो अब भारतीय संस्कृति में रच बस गया है. वैसे ये मुख्य रूप से उत्तर भारत का शब्द है. लेकिन अब ये मान लिया गया है कि भारतीय जुगा़ड़ू होते हैं.
मुगालता. ऐसा ही एक मशहूर शब्द है. कॉलेज में हम कहते थे कुत्ता पालो, बिल्ली पालो मगर मुगालता मत पालो. दिल्ली आकर भी इसे करीब-करीब ऐसे ही रूप में सुनने को मिला.
ऐसे ही कुछ और शब्दों पर आपका ध्यान जाए तो बताना न भूलें.
Monday, May 12, 2008
बकलौल लटपटिया
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5 comments:
बकलोल कहते हैं बुडबक को :) मतलब की बेवकूफ
सही है-स्लैंग सिरीज तो ज्ञानदत्त जी चलाये हुए हैं. बढ़िया/
सुन्दर! लिखते रहें। सब समझ जायेंगे। :)
रघुवंश जी से पूछिए ना भकचोंधर और लटपटिया में का फरक है।
बकलौल शब्द बिहार में सबसे ज्यादा चलता है... इसका मतलब होता है थोड़ा बेवकूफ... अगर कोई सीधी बातों को आसानी से समझ नहीं पाता है और कहा कुछ जाता है और गड़बड़ करके आता है उसे बकलौल कहा जाता है।
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