Tuesday, April 8, 2008

प्रवेश निषेध


लघु कथा

वहां लिखा था- कृपया भगवानजी की मूर्तियों को टीका-सिंदूर न लगाएं. हनुमान जी की प्रतिमा के इश्तहार में लिखा था-कृपया महिलाएं मूर्ति को न छुएं.

ये मंगलवार का दिन है. श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ती जा रही है. साड़ी आगे खड़ी है उसके पीछे जींस. मज़ाल है कि मंदिर की चौखट पार कर जाएं. हनुमानजी को छूना तो दूर की बात.

मंदिर की सीढ़ियों पर बच्चों की भीड़ है. लेकिन जींस सलवार कमीज़ नहीं. गंदे, मैले-कुचैले बच्चे. प्रसाद की आस में. आस-पास की बस्तियों से आए हुए.

अचानक शोर उठता है. एक बच्ची ज़ोर से रोने लगती है. आपा-धापी में उसे प्रसाद नहीं मिलता. कसूर उसके छोटे कद का है. उसके नन्हे हाथ उठते हैं लेकिन देने वाले के हाथों तक नहीं पहुंच पाते.

एक बड़ी गाड़ी आकर रुकती है. उससे मां-बहन की गालियां इन बच्चों के लिए. सालों ठीक से नहीं बैठ सकते. शोर क्यों कर रहे हो.

सीढ़ियों से चौखट तक. हर जगह प्रवेश निषेध.

2 comments:

संजय शर्मा said...

बहुत खूब अखिलेश जी , धार है इस लघुकथा मे . ये धार कायम रहे ! शुभकामना !!

akhilesh sharma said...

धन्यवाद संजय. वैसे ये मेरी पहली लघु कथा है. इरादा कहानी लिखने का है फिर उपन्यास. इसलिए शुरूआत तो हो गई. अब आगे आगे देखते हैं क्या होता है.