अभी आम चुनाव में वक़्त है। ये कम से कम कांग्रेस पार्टी कहती है. लेकिन अंदर ही अंदर सभी राजनीतिक दलों ने चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी हैं.
अभी सिर्फ़ दो पार्टियों के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार सामने आए हैं। पहला बीजेपी के लाल कृष्ण आडवाणी तो दूसरा बीएसपी की मायावती।
हमारे लोकतंत्र में वही होता है जिसकी उम्मीद किसी ने न की हो.
किसने सोचा था कि सन् २००४ में मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बनेंगे। आखिर तो सोनिया गांधी राष्ट्रपति भवन गई ही थीं. उन्हें कांग्रेस और यूपीए ने अपना नेता चुन ही लिया था. लेकिन आखिर में मनमोहन सिंह का नाम सामने आया.
चुनाव चाहे अक्तूबर नवंबर में हो या फिर अगले साल मई में। अभी इस सवाल का जवाब पक्के तौर पर नहीं दिया जा सकता है कि अगला प्रधानमंत्री कौन होगा.
फिर भी, कुछ नाम तो सामने हैं ही।
मनमोहन सिंह
ये सोनिया गांधी ही तय करेंगी कि यूपीए का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार कौन होगा। मनमोहन सिंह का नाम इसलिए क्योंकि चाहे सरकार सोनिया गांधी ने चलाई हो लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी के बाद पांच साल तक गठबंधन की सरकार चलाने का सेहरा तो उन्हीं के सिर बंध रहा है.
वो इसलिए भी क्योंकि इस अर्थशास्त्री ने पिछले पांच साल में भारत को आर्थिक तरक्की के नए मुकाम पर पहुंचाया है।
अगले चुनाव में अगर यूपीए को बहुमत मिलता है तो मनमोहन सिंह का नाम सबसे आगे रहेगा।
राहुल गांधी
वो कांग्रेस पार्टी के घोषित युवराज हैं। पीएम इन वेटिंग हैं. मनमोहन सिंह ने भऱत की तरह नेहरू खानदान की खड़ाऊ संभाल कर रखी हैं क्योंकि उन्हें भी असली वारिस का इंतजार है.
कुछ हिस्सों को छोड़ दें तो हमारा लोकतंत्र ऐसे ही चलता रहा है।
कांग्रेस चुनाव से ठीक पहले उनका नाम प्रधानमंत्री पद के लिए चला कर एक बड़ा राजनीतिक दांव चल सकती है।
लाल कृष्ण आडवाणी
वो एनडीए की ओर से घोषित उम्मीदवार हैं। ये उनका आखिरी चुनाव भी है। उनका गठबंधन महंगाई, आतंकवाद और कथित अल्पसंख्यक तुष्टिकरण जैसे मुद्दे उठाएगा.
उनकी किताब आई है। माई कंट्री माई लाइफ़. उसके बारे में चर्चा कभी और करूंगा. लेकिन ये किताब बताती है वो प्रधानमंत्री बनने के लिए कितना बेचैन हैं.
अगर कांग्रेस राहुल गांधी का दांव चलती है तो अगले चुनाव में आडवाणी को अपने से आधी उम्र के नेता से मुकाबला करना होगा।
मायावती
देश के हर नेता की तरह वो भी प्रधानमंत्री बनना चाहती हैं। अपनी इस इच्छा को छिपाती भी नहीं हैं.
उत्तर प्रदेश में अपने बूते पर सरकार बनाई है। ब्राह्मणों और दलितों को नया समीकरण बनाया है. अब इसी के बूते यूपी में लोक सभा की कम से कम पचास सीटें पाना चाहती हैं.
खिचड़ी सरकार बनने के आसार में मायावती अपनी इच्छा ज़रूर पूरा करना चाहेंगी। अगर प्रधानमंत्री न बनें तो कम से कम उपप्रधानमंत्री ही बन कर.
मुलायम सिंह यादव
जिस लालू यादव ने एक बार उनके प्रधानमंत्री बनने की राह में रोड़े अटकाए थे अब वो उनसे गलबईंया कर रहे हैं।
इसलिए नहीं कि वो उनको प्रधानमंत्री बनवाना चाहते हैं। बल्कि इसलिए कि यूपीए की स्थिति मजबूत हो सके.
लेकिन ये इस पर निर्भर करता है कि मुलायम यूपी में अपनी खोई ताकत पाते हैं या नहीं।
और आखिर में....
रामदास अठावले या उनके जैसा कोई और...
(क्योंकि जब एच डी देवेगौडा और इंदर कुमार गुजराल बन सकते हैं तो फिर कोई भी बन सकता है प्रधानमंत्री)
1 comment:
आडवाणी या राहुल। मायावती डिप्टी पीएम बन सकती हैं। इस पर नजर डालिए।
http://batangad.blogspot.com/2008/04/blog-post.html
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