संसद में बुधवार को महंगाई पर बहस हुई. कई बार पत्रकार दीर्घा में बैठ कर संसद में होने वाली सार्थक बहसों का लुत्फ लिया है. ये बहस भी वैसी ही रही.
वैसे देखा जाए तो इस बहस के दो पहलू रहे. पहला तो ये कि महंगाई के मुद्दे पर मंगलवार को संसद न चलने देने वाले सांसदों ने ये साबित कर दिया कि उनकी ज्यादा दिलचस्पी हंगामा करने और मीडिया का ध्यान अपनी ओर खींचने में रहता है. जब ये बहस हुई तब दोनों ही सदनों में कोरम तक पूरा नहीं हो पाया. मुट्ठी भर सांसद महंगाई जैसे गंभीर और आम आदमी से जुड़े मुद्दे पर हुई बहस से रूबरू रहे.
चूंकि राज्य सभा हाऊस ऑफ एल्डर्स कहा जाता है लिहाज़ा ज़्यादा मंझे हुए वक्ता भी यही मिलते हैं. इस बहस की शुरुआत की बीजेपी के नेता मुरली मनोहर जोशी ने. उन्होंने सरकार पर महंगाई से निबटने में नाकाम रहने का आरोप लगाया.
जोशी ने ख़ासतौर से कपिल सिब्बल की खिंचाई की. सिब्बल कह चुके हैं कि सरकार के पास महंगाई से लड़ने के लिए कोई जादू की छड़ी नहीं है. जोशी ने कहा कि सरकार के पास चाहे ये छड़ी हो न हो लेकिन जब उसकी जनता की छड़ी से पिटाई होगी तो उसे पाताल में भी छुपने की जगह नहीं मिलेगी.
सरकार की ओर से कांग्रेस के पी जे कुरियन ने मोर्चा संभाला. कुरियन ने माना कि पिछले छह महीनों में बेतहाशा महंगाई बढ़ी है. लेकिन उनका मानना है कि यूपीए सरकार ने अपनी ओर से इस पर अंकुश लगाने की भरपूर कोशिश की है. कुरियन ने सरकार का ये आरोप दोहराया कि महंगाई की बड़ी वजह है राज्य सरकारों की नाकामी.
असली मज़ा आया खांटी समाजवादी और बुजुर्ग नेता जनेश्वर मिश्र को सुनने में. उन्हें जब भी सुनता हूं तो चंद्रशेखर की याद आती है. बिल्कुल बेबाक. अभी बीमार हैं. इसलिए बैठे-बैठे ही भाषण दिया. शुद्ध हिंदी में देसी अंदाज़ में जैसे अखाड़े में किसी को धोबी पाट से चित कर रहे हों वैसे ही धीरे-धीरे मंझे अंदाज़ में मनमोहन सिंह सरकार को जमकर रगड़ा.
उन्होंने कहा कि ज़रूरी चीज़ों के वायदा कारोबार ने महंगाई को बढ़ाया है. उन्होंने फ्यूचर ट्रैडिंग को डाकुओं का अड्डा बताया. नई हरित क्रांति की ज़रूरत पर ज़ोर दिया. कहा, राहुल गांधी का नाम आगे बढ़ने से मनमोहन सिंह की कुर्सी पर खतरा मंडरा रहा है. इसलिए महंगाई से निबटने के लिए नई-नई शातिर तरकीबें ईजाद की जा रही हैं.
फिर बोले सीताराम येचुरी. कहा एक तरफ है चमकता भारत तो दूसरी तरफ है तड़पता भारत. उन्होंने सरकार को आगाह किया कि दोनों भारतों का अंतर पाटे नहीं तो बहुत देर हो जाएगी. येचुरी को सुनने में भी बहुत मज़ा आता है क्योंकि उनके भाषण तथ्यों पर आधारित होते हैं. वो अपने तर्कों के समर्थन में मज़बूत आँकड़े पेश करते हैं. बिना लाग लपेट के वो अपनी बात कह जाते हैं.
ऐसे में पत्रकार दीर्घा से बाहर निकल कर बस एक ही ख़्याल आया. मैंने उन सांसदों के बारे में सोचा जो दुनिया भर की मटरगश्तियों में मसरूफ़ होंगे. जो मौक़ा मिलने पर सिर्फ़ हंगामा करते हैं. लेकिन गंभीर बहस के दौरान सदनों से गैर हाज़िर रहते हैं.
मीडिया के बारे में भी सोचा कि ये गंभीर सार्थक बहस कितने न्यूज़ चैनल्स के प्राइम टाइम बुलेटिन की हेडलाइन तो छोड़ें अगर बुलेटिन का हिस्सा भी बन पाए तो गनीमत है. ऐसे में उन सांसदों का क्या कसूर जिन्हें अपनी शक्ल टीवी पर दिखवाने के लिए हंगामे के अलावा कोई और रास्ता नज़र नहीं आता.ब
Wednesday, April 16, 2008
बात बहस की
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1 comment:
जो डिटेल्स आपने इसमें दी है, टीवी से तो उसकी उम्मीद करना बेमानी है। अच्छा लिखा है।
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