गुरू की किताब आए तो चेला पीछे कैसे रहे.
नरेंद्र मोदी की किताब ज्योति पुंज जारी होने वाली है. इसे आरएसएस के महासचिव मोहन भागवत जारी करेंगे.
इस किताब में मोदी ने आरएसएस के कुछ जाने तो कुछ अनजाने चेहरों की कहानी लिखी है.
हालांकि लोगों को उम्मीद थी कि मोदी एक किताब ये भी लिखें कि आखिर उन्हें गुजरात में लगातार दो बार जीत किस तरह हासिल हुई.
वो ये भी बताएं कि गोधरा कांड के बाद हुए दंगों की असली कहानी क्या है. क्या इसी वजह से उन्हें जीत मिली.
सोहराबुद्दीन की मुठभेड़ का मामला क्या है. मौत के सौदागर के सोनिया गांधी के बयान का जवाब देने की रणनीति उन्होंने कैसे तैयार की.
क्यों उन्होंने अपने चुनाव प्रचार में सिवाए अपने किसी का नाम नहीं लिया. क्यों उनके भाषणों में खुद का नाम पचास बार तो बीजेपी का नाम पांच बार आता रहा.
आरएसएस से रिश्ते
नरेंद्र मोदी ने शुरूआत पूर्णकालिक प्रचारक से की. यानी आरएसएस के वो सदस्य जो अपना सब कुछ छोड़ कर संगठन के लिए पूरी तरह से समर्पित हो जाते हैं.
गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के बाद और गोधरा कांड और उसके बाद हुए दंगों के बाद मोदी हिंदू ह्रदय सम्राट के रूप में पेश किए गए.
पूरे संघ परिवार ने भी उन्हें बेहद पसंद किया. संघ को लगा कि कल्याण सिंह, उमा भारती के बाद अब उन्हें असली पोस्टर बॉय मिल गया है.
फिर मोदी के संघ के साथ रिश्ते बिगड़ने शुरू हुए. शुरूआत हुई भारतीय किसान संघ के आंदोलन से. तब गुजरात पुलिस ने बीकेएस के दफ्तर में घुस कर हेड़गेवार और गोलवलकर की तस्वीरों को सड़क पर फेंक दिया.
फिर संजय जोशी की कथित सेक्स सी़डी आई. इस सीडी ने एक अच्छे भले नेता का करियर बर्बाद कर दिया.
प्रवीण तोगड़िया ये कहते फिरे कि ३२ लोगों की सीडी बनवाई गई. उन्होंने मोदी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया.
वीएचपी, भारतीय किसान संघ, बजरंग दल और यहां तक कि आरएसएस का गुजरात का एक बड़ा तबका मोदी के खिलाफ हो गया.
इसके बावजूद नरेंद्र मोदी जीते. उनकी जीत से साफ हो गया कि उन्होंने अपना कद पार्टी और संगठन से ऊपर कर लिया. उन्होंने अपने वैचारिक परिवार को दिखा दिया कि व्यक्तित्व का करिश्मा सब पर भारी पड़ता है.
लेकिन इसके बावजूद अब वो आरएसएस से अपने संबंध सुधारने में लगे हैं. क्योंकि उन्हें आडवाणी के बाद बीजेपी का नेता कहा जाने लगा है, वो भी ये जानते हैं कि बिना संघ के आशीर्वाद के वो आगे नहीं बढ़ सकते. ज्योतिपुंज इसीलिए सामने आ रही है.
नरेंद्र मोदी की किताब ज्योति पुंज जारी होने वाली है. इसे आरएसएस के महासचिव मोहन भागवत जारी करेंगे.
इस किताब में मोदी ने आरएसएस के कुछ जाने तो कुछ अनजाने चेहरों की कहानी लिखी है.
हालांकि लोगों को उम्मीद थी कि मोदी एक किताब ये भी लिखें कि आखिर उन्हें गुजरात में लगातार दो बार जीत किस तरह हासिल हुई.
वो ये भी बताएं कि गोधरा कांड के बाद हुए दंगों की असली कहानी क्या है. क्या इसी वजह से उन्हें जीत मिली.
सोहराबुद्दीन की मुठभेड़ का मामला क्या है. मौत के सौदागर के सोनिया गांधी के बयान का जवाब देने की रणनीति उन्होंने कैसे तैयार की.
क्यों उन्होंने अपने चुनाव प्रचार में सिवाए अपने किसी का नाम नहीं लिया. क्यों उनके भाषणों में खुद का नाम पचास बार तो बीजेपी का नाम पांच बार आता रहा.
आरएसएस से रिश्ते
नरेंद्र मोदी ने शुरूआत पूर्णकालिक प्रचारक से की. यानी आरएसएस के वो सदस्य जो अपना सब कुछ छोड़ कर संगठन के लिए पूरी तरह से समर्पित हो जाते हैं.
गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के बाद और गोधरा कांड और उसके बाद हुए दंगों के बाद मोदी हिंदू ह्रदय सम्राट के रूप में पेश किए गए.
पूरे संघ परिवार ने भी उन्हें बेहद पसंद किया. संघ को लगा कि कल्याण सिंह, उमा भारती के बाद अब उन्हें असली पोस्टर बॉय मिल गया है.
फिर मोदी के संघ के साथ रिश्ते बिगड़ने शुरू हुए. शुरूआत हुई भारतीय किसान संघ के आंदोलन से. तब गुजरात पुलिस ने बीकेएस के दफ्तर में घुस कर हेड़गेवार और गोलवलकर की तस्वीरों को सड़क पर फेंक दिया.
फिर संजय जोशी की कथित सेक्स सी़डी आई. इस सीडी ने एक अच्छे भले नेता का करियर बर्बाद कर दिया.
प्रवीण तोगड़िया ये कहते फिरे कि ३२ लोगों की सीडी बनवाई गई. उन्होंने मोदी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया.
वीएचपी, भारतीय किसान संघ, बजरंग दल और यहां तक कि आरएसएस का गुजरात का एक बड़ा तबका मोदी के खिलाफ हो गया.
इसके बावजूद नरेंद्र मोदी जीते. उनकी जीत से साफ हो गया कि उन्होंने अपना कद पार्टी और संगठन से ऊपर कर लिया. उन्होंने अपने वैचारिक परिवार को दिखा दिया कि व्यक्तित्व का करिश्मा सब पर भारी पड़ता है.
लेकिन इसके बावजूद अब वो आरएसएस से अपने संबंध सुधारने में लगे हैं. क्योंकि उन्हें आडवाणी के बाद बीजेपी का नेता कहा जाने लगा है, वो भी ये जानते हैं कि बिना संघ के आशीर्वाद के वो आगे नहीं बढ़ सकते. ज्योतिपुंज इसीलिए सामने आ रही है.
6 comments:
अखिलेशजी
हमने आज मोहल्ला पर जातिवाद पर अपनी पोस्ट की है...जरुर पढे
धन्यवाद
प्रबीनअवलंब बारोट
मैंने पढ़ा. बहुत अच्छा लगा. गुजरात सिर्फ धर्म के आधार पर ही नहीं जातियों के आधार पर भी बंटा है. लेकिन ये सिर्फ गुजरात की कहानी नहीं है. हर जगह यही हो रहा है. दिल्ली मुंबई जैसे बड़े शहरों के आधुनिक रेसीडेंशियल कांपलेक्स में भी यही मानसिकता देखने को मिलती है. दोष हमारी सोच का है.
अखिलेश जी, अच्छा है अब रिपोर्टिंग से मिली आपकी अंदर-दृष्टि की झलक मिलती रहेगी। ये भी अच्छा है कि एनडीटीवी से अब आप समेत चार हिंदी ब्लॉगर हो गए, समरेंद्र को छोड़कर।
लोकप्रिय जन-समर्थन से किसी नेता का कद कैसे बढ़ता जाता है, इसी तो मोदी से साबित ही किया है। लेकिन मुझे नहीं लगता कि संघ परिवार के बाहर के लोग इस किताब को पढ़ने को उत्सुक होंगे। बशर्ते मोदी वे चीजें न बताएं जिन्हें आपने गिनाया है।
हां, यह वर्ड वेरीफिकेशन हटा दें। यह गैर-जरूरी है।
अखिलेश भाई, जानकारी के लिए शुक्रिया। वैसे जितने सवाल आपने उठाए हैं मोदी उन सभी के जवाब दे ही नहीं सकते। आखिर उन्हें दिल्ली तक का सफर करना है। वैसे यह तो पक्की बात है कि मोदी ने अपनी इस किताब में अपनी राजनीतिक प्रतिभा पूरी दिखाई होगी। वह हर काम सोच कर और पूरी रणनीति के साथ करते है। हां नए सियासतदां उस किताब को गुरु मंत्र के तौर पर ले सकते है। जहां तक संघ का सवाल है मोदी संघ की कीमत समझते है।
अखिलेश जी होम मिनिष्ट्री के बाद ब्लाग पर आपको देखना सुखद लगा. मोदी जी की किताब के बारे में जो जानकरी हमें मिली अच्छा लगा. पहले गुरू उसके बाद चेला . गुरु अपनी छवि बेहतर बनाने के प्रयास में अपने किये गये ढेर सारे कारनामों से पल्ला झाडने की कोशिश में अपनी फ़ज़ीहत करा चुके है.आशचर्य नही होगा जब मोदी अपनी किताब मे ये रह्स्योघाटित करे कि बाबरी मस्जिद और गुजरात के विभत्स दंगो के पिछे वाजपेयी जी का मास्टरमांइड था.
accha
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