Sunday, May 18, 2008

ब्लॉग पर गाली

किस तरह के लोग और किस किस तरह की मानसिकता है. मैं ब्लॉग लिखता हूं क्योंकि इससे मेरे लिखने की भूख मिटती है. लेकिन मैं ये अपेक्षा नहीं करता था कि मेरा लिखना किसी के लिए अपनी संकुचित और गिरी हुई मानसिकता दिखाने का ज़रिया बन जाएगा.

बात है मेरे पोस्ट छोटा पत्रकार बड़ा पत्रकार की. इस पर मुझे कुल ८ टिप्पणियां मिलीं. सबसे पहली थी अविनाश की. बाद में कुछ और भी जिसमें कुछ को ये पोस्ट पसंद आई और कुछ ने इस पर सवाल उठाया. मुझे सभी टिप्पणियां पसंद आईं.

लेकिन हद तब हो गई जब किसी अंजान व्यक्ति ने पहले तो अविनाश को गाली बकी. फिर उससे भी भूख नहीं मिटी तो शुद्ध हिंदी में गाली ही लिख डाली.

इसमें ग़लती मेरी भी है क्योंकि जब मैंने ब्लॉग बनाया था तब कमेंट मॉडरेशन में अंजान व्यक्तियों को भी टिप्पणी करने का अधिकार दे डाला था. इसका कितना बड़ा नुकसान हो सकता है ये मैंने देख लिया. इसलिए अब मेरे पोस्ट पर सिर्फ़ वही व्यक्ति कमेंट कर पाएंगे जिनका वैलिड ई-मेल या फिर कोई दूसरा आई डी हो.

Tuesday, May 13, 2008

छोटा पत्रकार बड़ा पत्रकार

समाज के इन दो वर्गों को कवर करते हुए पत्रकार भी दो श्रेणियों में बंटे हुए हैं. एक है छोटा पत्रकार. बेचारा. चेहरे पर दीन-हीन भाव, पिचके गाल और पेट, कभी कुर्ता तो कभी कंधे पर बैग लटकाए. दुम हिलाते आगे-पीछे घूमते हुए.

एक है बड़ा पत्रकार. चेहरे पर कुलीनता. मोटी तनख्वाहों से पेट और गाल फूलते हुए. कभी कुर्ता पहने तो चंपू बोले वाह सर क्या फैशन है. चार पांच चंपू आगे-पीछे घूमते हुए.

ख़बर भी इन दोनों के अंतर को समझती है. इसलिए छोटा पत्रकार ख़बर के पीछे भागता है. ख़बर बड़े पत्रकार के पीछे भागती है.

बड़ा पत्रकार ख़बर बनाता भी है. छोटा पत्रकार बड़े पत्रकार पर ख़बर लिखकर खुद को धन्य महसूस करता है. बड़े पत्रकार का पार्टियों में जाना, मैय्यत में जाना, नए ढंग से बाल कटवाना सब ख़बर है.

बड़ा पत्रकार पैदा होता है. छोटा पत्रकार छोटी जगह से आकर बड़ा बनने की कोशिश करता है.

बड़े पत्रकार के मुंह में चांदी की चम्मच होती है. वो बड़े स्कूलों में पढ़ने जाता है. शुरू से उसकी ज़बान अंग्रेजी बोलती है. हिंदी में वो सिर्फ़ अपनी कामवाली बाइयों और ड्राइवर से ही बात कर पाता है.

छोटा पत्रकार टाटपट्टियों पर बैठकर पढ़ाई करता है. मास्टरजी की बेंत उसके हाथों को लाल करती है. बारहवीं कक्षा तक फ़ादअ को फ़ादर और विंड को वाइंड कहता है. गुड मॉर्निंग कहने में ही उसके चेहरा शर्म से लाल हो जाता है.

नौकरियां छोटे पत्रकार को दुत्कारती हैं. बड़े पत्रकार को बुलाती हैं. नेता भी बड़े पत्रकार को पूछते हैं. छोटे से पूछते हैं तेरी औकात क्या है.

लेकिन छोटा कभी कभी बड़े काम करने की कोशिश भी करता है. कभी-कभी कर भी जाता है. लेकिन जब बड़ी ख़बर लेकर बड़े पत्रकार के पास जाता है तो बड़े पत्रकार को उसके इरादों पर शक होने लगता है.

कही ये अपनी औकात से बाहर तो नहीं निकल रहा. कहीं ये मेरी जगह लेने की कोशिश तो नहीं कर रहा. अबे ओ हरामी छोटे पत्रकार. अपनी औकात में रह. ये ख़बर अख़बार में नहीं जाएगी.

बड़ा पत्रकार कई बार छोटे को ख़बर का मतलब भी समझाने लगता है. देख छोटे. आज कल न ये समाजसेवी ख़बरों का ज़माना नहीं रहा. भ्रष्टाचार का खुलासा करेगा. अरे वो तो हर जगह है. आज के ज़माने में नई तरह की ख़बरें चलती हैं.

देख छोटे. टीवी चैनल्स को देख. वहां क्या नहीं बिक रहा है. खली चल रहा है. राखी सावंत के लटके-झटके चल रहे हैं. तू इन सबके बीच ये ख़बर कहां से ले आया रे.

लेकिन हुजूर हमें तो यही सिखाया गया. अबे चुप ईडियट. क्या पोंगा पंडितों की बात करता है. देख तेरी इच्छा यही है न कि तू भी बड़ा पत्रकार बने. बड़ी गाड़ी में घूमे. मोटी तनख्वाह पाए. इसलिए जो तूझे सिखाया गया उसको भूल जा. अब जैसा मैं करता हूं वैसा कर तो बड़ा पत्रकार बन जाएगा.

अबे तेरी औकात क्या है छोटे. कहता है बीस साल हो गए पत्रकारिता में. क्या मिला. अरे मिलेगा क्या. बाबाजी का घंटा. हमें देख. दस साल में कहां से कहां पहुंच गए.

छोटा और छोटा हो जाता है. लटका चेहरा लटक कर पैर तक पहुंचता है. घर पहुंचता है तो बीवी की मुस्कान उसे चुड़ैल के अट्टहास की तरह लगती है. कल तक जिस बेटे को सिर आँखों पर रखा उसे लात मार कर बोलता है अबे ओ छोटे की औलाद. तू ज़िंदगी भर छोटे की औलाद ही रहेगा.

Monday, May 12, 2008

बकलौल लटपटिया

ये मेरे शब्दकोश में जुड़े ताज़ा शब्द हैं. इनका मतलब सीधा-सीधा समझाना मुश्किल है. लेकिन मुझे ये शब्द बताने वाले बिहार से केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह कुछ-कुछ समझा पाते हैं.

उनका कहना है कि खड़ी हिंदी में इनका कोई पर्यायवाची नहीं है. ये एक तरह से चुटकी लेने का ढंग है. मिसाल के तौर पर श्रीमान क लटपटिया हैं. इसका मतलब ये है कि क पर विश्वास नहीं किया जा सकता. वो कभी कुछ कहते हैं तो कभी कुछ और.

बकलौल का अर्थ मैं नहीं समझ पाया. अगर आपमें से कोई जानता हो तो बता दे.

मैं जहां से आता हूं. मध्य प्रदेश के मालवा से वहां हमारे स्थानीय स्लैंग होते रहे हैं. ज़्यादा तो अब याद नहीं. लेकिन उन्हें सुनने में बेहद रस आता रहा.

इंदौर में मुंबई का बेहद प्रभाव है. ये वहां की भाषा में भी दिखाई देता है. जैसे कल्टी होना. यानी के पी के. खाओ पिओ और खिसको.

चिरकुट शब्द की उत्पत्ति पर शोध किया जा सकता है. इसका इस्तेमाल हम कॉलेज में बढ़ते वक्त भी करते रहे. दिल्ली आकर भी ये उपाधि प्रचलन में देखी. एक बार समाजवादी पार्टी के महासचिव अमर सिंह के मुंह से सुना तो अच्छा लगा. वो इस उपाधि से किसी को महिमामंडित कर रहे थे.

जुगाड़ तो अब भारतीय संस्कृति में रच बस गया है. वैसे ये मुख्य रूप से उत्तर भारत का शब्द है. लेकिन अब ये मान लिया गया है कि भारतीय जुगा़ड़ू होते हैं.

मुगालता. ऐसा ही एक मशहूर शब्द है. कॉलेज में हम कहते थे कुत्ता पालो, बिल्ली पालो मगर मुगालता मत पालो. दिल्ली आकर भी इसे करीब-करीब ऐसे ही रूप में सुनने को मिला.

ऐसे ही कुछ और शब्दों पर आपका ध्यान जाए तो बताना न भूलें.