याद करें वो अंत्याक्षरी के दिन. बचपन में बोलते थे बैठे-बैठे क्या करें करना है कुछ काम. शुरू करो अंत्याक्षरी ले कर प्रभु का नाम. फिर म से गाना गाओ और ऐसे-ऐसे करते किसी की हार होती तो किसी की जीत.
इस अंत्याक्षरी में ख़ास बात ये थी कि आपको फ़िल्म का नाम, संगीत निर्देशक, गीतकार और गायक-गायिका का नाम भी बताना होता था. उन दिनों न टीवी होता था और न ही दिन-रात फ़िल्मी गाने बजाते रेडियो के एफ़ एम चैनल्स.
आज ये सब कुछ है लेकिन गानों को सुनाने और दिखाने का अंदाज़ बदल गया है. अब रेडियो के नए एफ़ एम चैनल्स पर पूरा गाना भी नहीं सुनाते. बीच-बीच में रेडियो जॉकी की बक-बक सुन-सुन कर कान पक जाएं तो तुरंत ही चैनल बदल डालें. बस यही तरीक़ा बचता है.
न तो कोई रेडियो जॉकी आपको ये बताएगा कि ये कौन सी फ़िल्म का गाना है और न ही गीतकार, संगीत निर्देशक या फिर गायक-गायिका का नाम बताएगा.
लेकिन पहले भी और आज भी सदाबहार आकाशवाणी है. आज एफ़ एम के ज़माने में भी न सिर्फ़ चलती कार में आपकी ख़बरों की भूख मिटाता हुआ बल्कि गानों के पीछे रहने वाले कई प्रतिभाशाली लोगों का परिचय भी देता चलता है.
ये भारत में रेडियो क्रांति की सही तस्वीर है. प्राइवेट एफ़ एम चैनल्स सिर्फ़ बकवास करते हैं. वो दरअसल ज्यूक बॉक्स बन कर रह गए हैं. जहां एक के बाद एक गाने बजते रहते हैं. लेकिन सही मायनों में अब भी सूचना, जानकारी और मनोरंजन तीनों का ज़िम्मा संभाला है आकाशवाणी के गोल्ड एफ़ एम चैनल ने.
अब इन प्राइवेट एफ़ एम चैनल पर न्यूज़ की अनुमति देने की बात भी होती आ रही है. ये अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं है कि गानों के बीच दर्शकों से तू-तड़ाक कर बात करने वाले अवयस्क रेडियो जॉकी ख़बरों का क्या हाल कर देंगे.
भारत में न तो प्राइवेट टीवी और न ही रेडियो में कहीं भी समझदारी या संतुलन नहीं दिखता है. रेडियो पर ऐसा संतुलन ज़्यादा ज़रूरी है क्योंकि इसकी पहुंच का मुक़ाबला कोई भी माध्यम नहीं कर सकता.
बीबीसी रेडियो की नौकरी करते वक़्त तीन साल लंदन में बिताने का मौक़ा मिला. सुबह की शिफ़्ट के लिए कई बार घर से चार बजे सुबह निकलना होता था. हमेशा एक ही ड्राइवर था जो मुझे घर से पिक करने आता था.
सुबह साढ़े तीन बजे उठ कर और तैयार हो कर जब मैं उसकी गाड़ी में सवार होता था उससे हाय हैलो के अलावा कोई और बात नहीं होती.
उसका शौक था रेडियो सुनने का. मुझे शुरू-शुरू में हैरानी हुई कि किस तरह कोई व्यक्ति सुबह चार बजे से ही नॉन स्टॉप सिर्फ़ रेडियो पर ख़बरों के चैनल्स सुन सकता है.
लेकिन वो हमेशा या तो बिज़नेस या फिर बीबीसी के घरेलू एफ़ एम चैनल्स लगाए रखता था. रेडियो पर चौबीस घंटे के ये न्यूज़ स्टेशन हमेशा गंभीर ढंग से घरेलू या विदेशी समस्याओं पर न सिर्फ़ लाइव समाचार देते रहते हैं बल्कि थोड़ी-थोड़ी देर में मामलों के जानकारों से स्टुडियो या फिर फ़ोन लाइन पर बात भी करवाते रहते हैं.
रेडियो के मामले में ब्रिटन की परिपक्विता का कोई मुकाबला नहीं है. इसी तरह से वहां के दर्शकों या श्रोताओं के रेडियो की ओर झुकान का भी कोई मुक़ाबला नहीं है.
लेकिन ये भारत में भी कमी है और आकाशवाणी की भी कि यहां वो एफ़ एम पर ख़बरों का एक भी चौबीस घंटे का स्टेशन शुरू नहीं कर सके हैं.
एआईआर एफ़ एम गोल्ड पर हर घंटे समाचार आते ज़रूर हैं लेकिन सिर्फ़ पांच मिनट के लिए वो भी बारी-बारी से अंग्रेज़ी और हिंदी में. उसके तुरंत बाद पुराने गाने शुरू हो जाते हैं.
रात को ज़रूर साढ़े आठ बजे से एक घंटे की सामयिक विषयों पर चर्चा और समाचार का क्रम है. जो सुनने में बेहद दिलचस्प है.
पहले साढ़े आठ बजे के हिंदी प्रसारण में जाने-माने पत्रकारों को बुलाया जाता था जो दिन की बड़ी ख़बरों पर अपनी राय रखा करते थे. लेकिन सरकारी मीडिया में जो हाल है ज़ाहिर है किसी पत्रकार ने ऐसा कुछ कहा होगा जो आकाओ को रास नहीं आया लिहाज़ा उसे बंद कर दिया गया है.
नौ बजे अंग्रेजी में समाचार आते हैं फिर पंद्रह मिनट का डिस्कशन होता है. इसकी फॉर्मेट मुझे बेहद पसंद है. कोई भी विषय पर दो स्वतंत्र जानकारों को बातचीत के लिए बैठा दिया जाता है. ये आपस में लंबे-लंबे सवाल जवाब करते हैं. किसी भी गंभीर या गूढ़ विषय को समझाने का इससे अच्छा तरीक़ा नहीं हो सकता.
अगर प्राइवेट एफ़ एम स्टेशन पर नहीं तो कम से कम आकाशवाणी पर ही रेडियो का चौबीस घंटे समाचारों का प्रसारण शुरू किया जाना चाहिए. ये भारत में प्राइवेट न्यूज़ चैनलों से त्रस्त लोगों के लिए मरहम का काम करेगा.
8 comments:
मैं बीबीसी की सुबह ६:३० बजे की ख़बर "आज के दिन" को इंटरनेट की माध्यम से सुनता हू. जो बेहद कोम्पक्ट होता है. २४ घंटे का न्यूज़ चैनल को कोई स्लोट अमूमन उसकी बराबरी नही कर सकता.
*इंटरनेट के माध्यम
दर्द और मांग दोनों जायज है.
सही है अखिलेश भाई...
उम्मीद है मुझे पहचान लिया होगा...
जिज्ञासा जगाएंगे तो अच्छा लगेगा। बाकी राजगढ़ ब्यावरा को ही याद कर लें।
aap thik kahtehain akhilesh i ..main khud AIR gold par aane wale news capsules aur bulletins ka deewana hoon.
waqt badal raha hai bhai.
ब्लॉग जगत का घिनौना चेहरा अविनाश
भारतीय ब्लॉगिंग दुनिया के समस्त ब्लॉगरों से एक स्वतंत्र पत्रकार एवं नियमित ब्लॉग पाठक का विनम्र अपील-
संचार की नई विधा ब्लॉग अपनी बात कहने का सबसे प्रभावी माध्यम बन सकता है, परन्तु कुछ कुंठित ब्लॉगरों के कारण आज ब्लॉग व्यक्तिगत कुंठा निकालने का माध्यम बन कर रह गया है | अविनाश (मोहल्ला) एवं यशवंत (भड़ास 4 मीडिया) जैसे कुंठित
ब्लॉगर महज सस्ती लोकप्रियता हेतु इसका प्रयोग कर रहे हैं |बिना तथ्य खोजे अपने ब्लॉग या वेबसाइट पर खबरों को छापना उतना ही बड़ा अपराध है जितना कि बिना गवाही के सजा सुनाना | भाई अविनाश को मैं वर्षों से जानता हूँ - प्रभात खबर के जमाने से | उनकी अब तो आदत बन चुकी है गलत और अधुरी खबरों को अपने ब्लॉग पर पोस्ट करना | और, हो भी क्यूं न, भाई का ब्लॉग जाना भी इसीलिए जाता है|
कल कुछ ब्लॉगर मित्रों से बात चल रही थी कि अविनाश आलोचना सुनने की ताकत नहीं है, तभी तो अपनी व्यकतिगत कुंठा से प्रभावित खबरों पर आने वाली 'कटु प्रतिक्रिया' को मौडेरेट कर देता है | अविनाश जैसे लोग जिस तरह से ब्लॉग विधा का इस्तेमाल कर रहे हैं, निश्चय ही वह दिन दूर नहीं जब ब्लॉग पर भी 'कंटेंट कोड' लगाने की आवश्यकता पड़े | अतः तमाम वेब पत्रकारों से अपील है कि इस तरह की कुंठित मानसिकता वाले ब्लॉगरों तथा मोडरेटरों का बहिष्कार करें, तभी जाकर आम पाठकों का ब्लॉग या वेबसाइट आधारित खबरों पर विश्वास होगा |
मित्रों एक पुरानी कहावत से हम सभी तो अवगत हैं ही –
'एक सड़ी मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है', उसी तरह अविनाश जैसे लोग इस पूरी विधा को गंदा कर रहे हैं |
मित्रों ये मेरा ही ब्लॉग है लेकिन इसका स्वामित्व मुझसे छिन गया है क्योंकि मैं जिस ईमेल का इस्तेमाल इसमें छापने के लिए करता था वह भूल गया और अब किसी भी हालत में उसे वापस नहीं पा सकता हूं. इसलिए मैंने इसी नाम से लेकिन अलग लिंक से शुरू कर दिया है. कृपया www.merikahee.blogspot.com पर आयें और अपनी प्रतिक्रियायें भेजें. धन्यवाद अखिलेश शर्मा
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